Opinion- टेस्ट मैच के खिलाड़ी नीतीश! अंतिम गेंद तक बनाते हैं रणनीति

पटना: राजनीति में कोई हमेशा न तो दोस्त होता है और न ही दुश्मन। इस बात का एहसास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साथ दो-दो बार सरकार बना कर पुष्ट कर डाला। 'अविश्वसनीय राजनीति' के साथ नेशनल पॉलि

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पटना: राजनीति में कोई हमेशा न तो दोस्त होता है और न ही दुश्मन। इस बात का एहसास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साथ दो-दो बार सरकार बना कर पुष्ट कर डाला। 'अविश्वसनीय राजनीति' के साथ नेशनल पॉलिटिक्स में सीधी दखलंदाजी वाली पाली पर विराम लगाते ही, नीतीश कुमार की चुप्पी को सियासी गलियारों में आवाज मिलने लगी है। इस आवाज को तब बल मिला, जब एक फ्लाइट में सफर कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को अपने बगल में बिठा लिया। ये वो समय था, जब केंद्र में मंत्रियों की संख्या और विभाग को लेकर जदयू की राजनीति के स्वर मध्यम हो गए थे।


क्या इंडिया गठबंधन की तरफ देख रहे नीतीश?

नीतीश कुमार दो ध्रुवी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। काफी संयमित होकर हर छोर की राजनीति के साथ समन्वय बना कर चलते हैं। हाल ही में फ्लाइट में तेजस्वी यादव को पीछे से अपने साथ बिठाने का कोई एक मकसद नहीं था। एक तो भाजपा का कान खड़खड़ाए और दूसरा ये कि धुर विरोधी तेजस्वी यादव से संवादहीनता न आए। नीतीश कुमार की राजनीति का एक पहलू ये भी है कि संख्या बल का दबाव सहयोगी दल पर बना रहे। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी के 'पीएम पद का ऑफर' वाले बयान को इससे जोड़ कर देखा जा सकता है। इस बयान का मतलब इंडिया गठबंधन की तरफ एक खिड़की खोलना भी है। वैसे भी क्रिकेट की भाषा में बात करें तो नीतीश कुमार टेस्ट मैच के खिलाड़ी रहे हैं। बल्लेबाजी धीमी करते हैं। ट्वेंटी-ट्वेंटी की तरह हर बॉल पर छक्का मारने की फिराक में नहीं रहते। ये नीतीश कुमार की डिफेंसिव तकनीक है। इन्हें नो बॉल का इंतजार रहता है, जहां गलत शॉर्ट पर आउट होने का खतरा भी नहीं और तुक्का लगा तो छक्का।

बिहार की राजनीति में 9वीं बार सीएम बनने की 'तकनीक'

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति में परिवर्तन के संकेत अक्सर संभावनाओं से परे रहे हैं। बिहार के संदर्भ में गठबंधन का टूटना और नया एलायंस बना लेने में नीतीश कुमार को 'एक्सपर्ट' के तौर पर ट्रीट किया जाता है। हालांकि, पहली बार राजद के साथ सरकार बनाने में समय लिया। नीतीश कुमार के नेतृत्व में 22 फरवरी 2015 को सरकार बनी। 10 महीने बाद 20 नवंबर 2015 में नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। परंतु, इस बार जदयू अकेली नहीं थी। यहां लालू यादव की पार्टी राजद के साथ उन्होंने महागठबंधन की सरकार बनाकर सीएम पद की शपथ ली थी। ये पहली बार था, जब जदयू और राजद सत्ता में साथ आई थी।


राजद का साथ छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनाने में लगभग 20 महीने का अंतराल आया। यानी 26 जुलाई 2017 को एक बार फिर राजद को छोड़कर भाजपा के साथ राजग की सरकार बनाई। राजग की ये सरकार ढाई साल चली थी। इसके बाद 16 नवंबर 2020 को विधानसभा चुनावों के बाद नीतीश कुमार ने फिर से जदयू-भाजपा (एनडीए) की सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। इसके दो साल बाद जदयू-भाजपा के रिश्तों में खटास आ गई। नीतीश ने 10 अगस्त 2022 को फिर से लालू यादव की पार्टी का दामन थाम लिया। उन्होंने जदयू-राजद के गठजोड़ से महागठबंधन की सरकार बना ली। बिहार में 2022 के बाद महागठबंधन की सरकार करीब दो साल चली। नीतीश कुमार ने एक बार फिर बाजी पलटते हुए 28 जनवरी 2024 को जदयू-भाजपा (एनडीए) की नई सरकार बना ली है।


इंडिया गठबंधन की तरफ देखने की वजह?

ये तो नीतीश कुमार ही बता सकते हैं कि इंडिया गठबंधन की तरफ देखेंगे या नहीं। लेकिन इस गठबंधन की तरफ देखने की वजह तो है। आइए जानते हैं:-
  • मन मुताबिक विभाग नहीं मिला। रेल, वित्त, कृषि, स्वास्थ्य जैसे बड़े बजट वाले विभाग की इच्छा पूरी नहीं।
  • सांसदों की संख्या और राजनीतिक जरूरत के आधार पर मंत्री पद की संख्या और विभाग जदयू के भीतरी दबाव को बढ़ा रहा।
  • विभाग के बने मंत्री में उत्साह नहीं दिखता।
  • केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का ये कहना विभाग कोई खराब और अच्छा नहीं होता।
  • केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का कहना विभाग का नाम सुनकर दिमाग खराब हो गया।
  • कार्यकर्ताओं में भी विभागों को लेकर उत्साह नहीं।

बिहार के सीएम नीतीश का बॉडी लैंग्वेज

पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जो विनम्रता भरा बॉडी लैंग्वेज है, वो एनडीए के साथ जुड़े रहने का संकेत करता है। सदाशयता भी इतनी कि नमो को जरूरत से ज्यादा सम्मान दिया। राजनीति की भाषा की बात करें तो ये सियासत की विकल्पहीनता की ओर इशारा करता है। मगर, सवाल उठता है कि सामने कोई और विकल्प हो तब। याद कीजिए, नीतीश कुमार की झुझलाहट भरा संवाद मिट्टी में मिल जाएंगे, भाजपा में नहीं जाएंगे संघ मुक्त भारत बनाएंगे। लेकिन, ये सारे अंदाज धरे रह गए और अब तो भाजपा के साथ चीनी और पानी की तरह मिलते दिखते हैं।


क्या नीतीश के लिए परीक्षा की घड़ी है?

राजनीति की कई सूरत दिखाने वाले नीतीश कुमार के लिए वर्तमान समय परीक्षा की घड़ी है। ये उनके राष्ट्रीय राजनीति और सेकुलर पॉलिटिक्स का समझने का समय है। अब ये इंडिया गठबंधन पर भी निर्भर करता है कि वे नीतीश कुमार का बेहतर इस्तेमाल कर सेकुलर राजनीति के वफादार बनेंगे या सत्ता के शीर्ष पर बने रहने की जिद्द के साथ। दूसरा सवाल ये है कि भाजपा की तरफ से कोई नो बॉल तो आए? लेकिन इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन के बीच का 'खेला' अभी बाकी है। ये वो समय भी नहीं, जहां नीतीश कुमार की परीक्षा हो सके। लेकिन लोकसभा में संख्या बल का गणित जब सिर चढ़ कर बोलेगा, तब वो समय नीतीश कुमार की राजनीति की अग्निपरीक्षा की समय होगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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